अल-फलाह यूनिवर्सिटी के छात्र और संस्थापक को दिल्ली ब्लास्ट और धोखाधड़ी के मामले में गिरफ्तार किया गया

अल-फलाह यूनिवर्सिटी के छात्र और संस्थापक को दिल्ली ब्लास्ट और धोखाधड़ी के मामले में गिरफ्तार किया गया

10 नवंबर, 2025 को दिल्ली के लाल किले के पास हुए भयानक विस्फोट में 12 से 15 लोग मारे गए और 20 से 28 घायल हुए — एक ऐसा हमला जिसने देश भर में तहलका मचा दिया। लेकिन जब जांच आगे बढ़ी, तो एक अजीब सच सामने आया: यह हमला केवल आतंकी गतिविधियों का हिस्सा नहीं था, बल्कि एक अल-फलाह यूनिवर्सिटी के नाम पर चल रही वित्तीय धोखाधड़ी और आतंकी नेटवर्क का अंतिम परिणाम था। जिस संस्थान को लोग डॉक्टर बनाने की उम्मीद से भरकर दाखिला लेते थे, वहीं आज उसके छात्र, डॉक्टर और संस्थापक आतंकी गतिविधियों के केंद्र में खड़े हैं।

दिल्ली ब्लास्ट के बाद छात्रों की गिरफ्तारी

14 नवंबर, 2025 को, निसार आलम, अल-फलाह यूनिवर्सिटी के एक MBBS छात्र, ने अपने परिवार के साथ दलखोला, पश्चिम बंगाल में एक पारिवारिक कार्यक्रम में भाग लेने के लिए आए हुए थे। लेकिन नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (NIA) ने उसके मोबाइल टावर के डेटा के आधार पर उसे गिरफ्तार कर लिया। उसके बाद एक और छात्र, जानिशार आलम, जो एक शादी में शामिल होने के लिए कोनल गांव पहुंचा था, उसे भी गिरफ्तार कर लिया गया। दोनों के परिवार लुधियाना, पंजाब में रहते थे, लेकिन दलखोला में उनकी जमीन और रिश्ते थे — जो बाद में पता चला कि आतंकी नेटवर्क के लिए एक छिपा हुआ बेस था।

इसी दिन, दिल्ली पुलिस की विशेष इकाई ने एक और छात्र, अहमद रज़ा, को देवबंद में गिरफ्तार किया। जांच में यह पता चला कि ये सभी छात्र अल-फलाह यूनिवर्सिटी के एक छोटे से नेटवर्क के हिस्से थे, जो आतंकी गतिविधियों के लिए जानकारी, सामग्री और समर्थन दे रहा था।

डॉक्टर बनकर बम बनाने वाले

लेकिन जब जांच आगे बढ़ी, तो सच और भी डरावना निकला। डॉ. मुजम्मिल शाकिल, जिन्हें पहले से ही श्रीनगर में जैश-ए-मोहम्मद के पोस्टर लगाने के लिए नजरअंदाज किया जा रहा था, के कमरे से 360 किलोग्राम विस्फोटक, बंदूकें, टाइमर और रसायन मिले। वहीं, डॉ. उमर उन नबी को बम लदा गाड़ी चलाने का आरोप लगा। इनमें से कुछ डॉक्टरों के नाम तो अल-फलाह यूनिवर्सिटी के फैकल्टी लिस्ट में भी दर्ज थे।

नेशनल मेडिकल कमीशन ने इन चार डॉक्टरों — डॉ. मुजम्मिल शाकिल, डॉ. शाहीन शाहिद, डॉ. उमर मोहम्मद और डॉ. उमर उन नबी — की रजिस्ट्रेशन रद्द कर दी। एक अन्य डॉक्टर, डॉ. शाहीन शाहिद, जिन्हें कुछ रिपोर्ट्स में "साहिद" लिखा गया, उनकी गिरफ्तारी अभी तक नहीं हुई है, लेकिन उनका नाम अभी भी जांच के केंद्र में है।

संस्थापक की गिरफ्तारी: धोखाधड़ी से आतंक तक

18 नवंबर, 2025 को, जवाद अहमद सिद्दीकी, अल-फलाह यूनिवर्सिटी के संस्थापक और चैन्सलर, को एनडीसीआर, फरीदाबाद और ओखला में 25 स्थानों पर छापेमारी के बाद एन्फोर्समेंट डिरेक्टोरेट (ED) ने गिरफ्तार किया। उनके घरों और ऑफिसों से ₹48 लाख नकद, डिजिटल डेटा और शेल कंपनियों के खातों के रिकॉर्ड बरामद हुए।

यह सब इसलिए हुआ क्योंकि अल-फलाह यूनिवर्सिटी ने यूजीसी एक्ट के सेक्शन 12(B) के तहत अपनी मान्यता का झूठा दावा किया था — जबकि यूजीसी ने स्पष्ट कर दिया था कि यह संस्थान केवल सेक्शन 2(f) के तहत एक राज्य निजी विश्वविद्यालय है और कभी अनुदान के योग्य नहीं रही। इस धोखाधड़ी के जरिए लाखों रुपये की राशि बनाई गई, जिसका उपयोग आतंकी गतिविधियों के लिए किया जा सकता था।

संबंधित आतंकी नेटवर्क का खुलासा

संबंधित आतंकी नेटवर्क का खुलासा

जांच में एक और चौंकाने वाला नाम सामने आया: मिर्ज़ा शादाब बैग, एक फरार भारतीय मुजाहिदीन सदस्य, जो 2020 में अल-फलाह यूनिवर्सिटी के छात्र थे। उनका नाम एक विस्फोटक वितरण नेटवर्क के साथ जुड़ा हुआ है, जिसकी जांच अभी भी जारी है।

इसके अलावा, हमूद अहमद सिद्दीकी, जवाद के छोटे भाई, को हैदराबाद में तीन धोखाधड़ी के मामलों में गिरफ्तार किया गया। उन पर एक रिवॉर्ड भी घोषित किया गया था। यह सब दर्शाता है कि यह एक एकल व्यक्ति का मामला नहीं, बल्कि एक पूरा परिवार और उसके आसपास का जाल था।

संस्थान का अंत: स्वीकृति रद्द, नाम बदला

असोसिएशन ऑफ इंडियन यूनिवर्सिटीज (AIU) ने अल-फलाह यूनिवर्सिटी की सदस्यता रद्द कर दी। नेशनल मेडिकल कमीशन ने चार डॉक्टरों की लाइसेंस रद्द कर दी। दिल्ली पुलिस ने जवाद सिद्दीकी के खिलाफ दो फर्स्ट इनफॉर्मेशन रिपोर्ट्स दर्ज कीं — एक धोखाधड़ी के लिए, दूसरी आतंकी वित्तपोषण के लिए।

जब लोग डॉक्टर बनने के लिए अपनी जिंदगी के पांच साल देते हैं, तो ऐसा विश्वविद्यालय जो न तो उन्हें शिक्षा देता है और न ही उन्हें जीवन देता है, बल्कि उन्हें आतंक की ओर ले जाता है — यह भारतीय शिक्षा प्रणाली के लिए एक आतंक है।

अगला कदम: जांच जारी, न्याय का इंतजार

अगला कदम: जांच जारी, न्याय का इंतजार

जवाद सिद्दीकी को ED की 13 दिनों की जेल में रखा गया है, जो 1 दिसंबर, 2025 तक चलेगा। उनके खिलाफ आतंकी वित्तपोषण का मामला अभी भी जारी है। NIA ने अभी तक दो और छात्रों को गिरफ्तार किया है — एक उत्तर प्रदेश से और एक मध्य प्रदेश से। शायद यह अभी बस शुरुआत है।

दिल्ली के लाल किले के पास विस्फोट के बाद लोगों ने कहा — "यह बाहरी आतंकवादी हैं"। लेकिन अब पता चला है: आतंकवाद का जन्म भारत के अंदर ही हो रहा है — एक नाम से शुरू होता है, जिसका अर्थ है "उपहार"।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

अल-फलाह यूनिवर्सिटी की मान्यता क्या थी और यह कैसे झूठी थी?

अल-फलाह यूनिवर्सिटी केवल यूजीसी एक्ट के सेक्शन 2(f) के तहत एक राज्य निजी विश्वविद्यालय थी, जिसका मतलब है कि यह अनुदान लेने के योग्य नहीं थी। लेकिन यह अपने वेबसाइट और विज्ञापनों में सेक्शन 12(B) का झूठा दावा करती थी — जिसके तहत सरकारी अनुदान मिलता है। इस धोखे के जरिए लाखों रुपये जुटाए गए, जिनका उपयोग आतंकी गतिविधियों में हो सकता था।

क्या यह मामला सिर्फ दिल्ली ब्लास्ट तक सीमित है?

नहीं। इस मामले में दिल्ली, पंजाब, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और तेलंगाना तक के लोग शामिल हैं। जवाद सिद्दीकी के भाई को महोबा में धोखाधड़ी के तीन मामलों में गिरफ्तार किया गया है। एक फरार आतंकवादी, मिर्ज़ा शादाब बैग, भी इस यूनिवर्सिटी का पूर्व छात्र है। यह एक व्यापक नेटवर्क है।

डॉक्टरों को आतंकी गतिविधियों में कैसे शामिल होने का मौका मिला?

अल-फलाह यूनिवर्सिटी के डॉक्टर न केवल अपने छात्रों को नहीं, बल्कि एक अलग विश्व में भी बड़े हुए। जिस विश्वविद्यालय में शिक्षा की जगह झूठी दर्जाबंदी थी, वहां नैतिकता का कोई स्थान नहीं था। डॉक्टर बनने के बाद भी वे नियमों के बाहर रहे — जिससे उन्हें विस्फोटक और हथियार जमा करने का मौका मिला।

इस घटना ने भारतीय चिकित्सा शिक्षा पर क्या प्रभाव डाला?

इस घटना ने निजी चिकित्सा विश्वविद्यालयों के अनियमित आयोजन पर गहरा प्रहार किया है। अब NMC ने सभी निजी विश्वविद्यालयों की ऑडिट शुरू कर दी है। एक बार विश्वविद्यालय ने बच्चों की नौकरी का वादा किया, लेकिन अब यह उनकी जान का खतरा बन गया। इसलिए अब शिक्षा का विश्वास टूट रहा है।

अगले कदम क्या होंगे?

ED अब जवाद सिद्दीकी के शेल कंपनियों के फंड ट्रैक कर रहा है — खासकर उन खातों को जो विदेशों में थे। NIA चार और छात्रों की गिरफ्तारी के लिए अनुमति मांग रहा है। यूजीसी ने भी अब निजी विश्वविद्यालयों के लिए एक नया ऑडिट नियम बनाने का फैसला किया है — जिसमें नियमित आतंकी वित्तपोषण की जांच शामिल होगी।

क्या यह मामला किसी राजनीतिक षड्यंत्र का हिस्सा है?

अभी तक कोई साक्ष्य नहीं मिला है। सभी जांचें विशेषज्ञ एजेंसियों द्वारा निष्पक्ष ढंग से की जा रही हैं। लेकिन इस मामले में एक बात साफ है: जब शिक्षा और चिकित्सा का व्यापार बन जाता है, तो इंसानियत भी बेची जाने लगती है। यह एक सामाजिक अपराध है — न कि केवल राजनीतिक।